“ आचार्य वैरागी पद्मनाभं ” पूरे देश की लम्बी पदयात्रा पर
थे| भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाकर उन्होंने उन क्षेत्रों के विद्वानों से
शास्त्रार्थ कर उन्हें हराया| केरल से अपनी यात्रा कर वह बिहार के महिष्मति नगर
पहुंचे| वहां के प्राचीन मंदिर में दर्शन और साधना कर वह अपने पुराने मित्र “ आचार्य
चैतन्य स्वामी “ से मिलने पहुंचे| उन दिनों आचार्य चैतन्य नगर के विद्वानों में
उच्च स्थान रखते थे| आचार्य स्वामी के घर पर विद्या और तप का अदभुत माहौल प्रतिदिन रहता था| नगर के विद्वान जन उनसे विभिन्न विषयों पर
चर्चा-परिचर्चा किया करते थे|
आचार्य वैरागी के विषय में पूरे नगर में चर्चा चल पड़ी थी कि
वे विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें हरा कर महिष्मति नगर
पहुंचे हैं| आचार्य चैतन्य स्वामी को आचार्य वैरागी ने शास्त्रार्थ के लिए कहा|
आचार्य चैतन्य गृहस्थ थे, संतोष ही उनका परम धर्म था| शास्त्रार्थ में उनकी इतनी
रूचि ना थी| वे परब्रह्म ज्ञान को निश्छल भाव से नगर को निरंतर देते रहते थे|
शास्त्रार्थ कर अपनी श्रेष्ठता साबित करने की उनकी कोई लालसा ना थी, पर पुराने
मित्र के आग्रह पर उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया| महीनों तक शास्त्रार्थ चला,
पूरे नगर में उत्सुकता थी कि शास्त्रार्थ में कौन विजयी होगा?| अंततः आचार्य
चैतन्य हारते हुये नजर आने लगे|
आचार्य चैतन्य को हारता देख उनकी पत्नी “ वैष्णवी देवी ” ने
आचार्य वैरागी से कहा : आचार्य, अभी तो आपने आधे ही अंग पर विजय प्राप्त करी है| भारतीय
जीवन में पति-पत्नी दोनों एक ही जीवन और सत्ता का निर्वहन करते हैं, यदि आप मुझे
भी शास्त्रार्थ में पराजित कर सके तो ही आप पूर्ण रूप से विजय के हक़दार होंगे|
आचार्य वैरागी ने वैष्णवी देवी की शास्त्रार्थ चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया|
वैष्णवी देवी ने कई प्रश्न किये महीनों तक शास्त्रार्थ चलता रहा| वैष्णवी देवी ने गृहस्थ
से सम्बंधित प्रश्न पूछे पर आचार्य तो बाल-ब्रह्मचारी थे| गृहस्थ के गूढ़ प्रश्नों
में वो उलझ गए और अंततः उन्होंने स्वयं की हार स्वीकार कर ली| इस प्रकार आचार्य
वैरागी ने गृहस्थ स्त्री की महत्ता और शक्ति को पहचाना|
प्रिय दोस्तों, पत्नी को पति का आधा अंग मान कर ही
विद्वानों और देवों ने पत्नी को पति की अर्धांग्नी का दर्जा दिया है| गृहस्थ जीवन
जीने वाले पुरुष की अर्धशक्ति अर्धांग्नी को बदलतीसोच नमन करता है|
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