सम्राट चन्द्रगुप्त
मौर्य की वीरता को किसी परिचय की जरूरत नहीं है और उनके महामंत्री कौटिल्य(चाणक्य)
की राजनीतिक कुटिलता के बारे में भी कहने की जरूरत नहीं है, फिर भी एक बार वे
दोनों भूल कर बैठे जिससे उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा |
चाणक्य ने नन्दवंश
का पूर्णतः नाश करने की शपथ ली थी, उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नन्द
की राजधानी पाटलिपुत्र पर धावा बोल दिया, भीषण युद्ध हुआ| नन्द को हराना इतना आसान
नहीं था, चन्द्रगुप्त मौर्य की पराजय हो गयी |
चाणक्य और
चन्द्रगुप्त वन-वन भटकने लगे, कुछ दिनों तक ऐसे ही भटकते हुए वो एक झोपड़ी के पास पहुँचे
|
आवाज लगायी, अन्दर
से एक वृद्ध महिला निकली |
चन्द्रगुप्त ने
पूछा- माई, भोजन मिलेगा ?
वृद्ध महिला गरीब
थी, मगर सज्जन और उदार थी | उसने उन दोनों को झोपड़ी में बिठाया, फिर अपने सामर्थ्य
के हिसाब से आवभगत करने लगी |
वृद्धा इस बात से
बिल्कुल अनजान थी कि उसके यहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य आये हैं, उसने उन
दोनों के लिए खिचड़ी बनाकर, परोसी |
चन्द्रगुप्त मौर्य
बहुत भूखे थे, उन्होंने पहला निवाला पकड़ने के लिए अपना हाथ थाली के बीच में डाला
और जोर से बोले- आह! यह तो बहुत गरम है |
वृद्धा ने मजाक भाव
से कहा- अरे बेटा, तू भी मुझे चन्द्रगुप्त जैसा ही मूर्ख लग रहा है|
वृद्धा की जुबान पर
अपना नाम सुनते ही चन्द्रगुप्त ने उत्सुकता से पूछा- माई, चन्द्रगुप्त ने क्या
मूर्खता करी है, जो तुम मुझे उसके जैसा कह रही हो ?
वृद्धा ने हँसकर
कहा- देख बेटा, चन्द्रगुप्त भी तेरी तरह है, जैसे तू अभी अपनी भूख मिटाने के लिये
उतावला है, वैसे ही वो भी राजा बनने के लिये बड़ा उतावला है| तुझे खिचड़ी खानी है तो
किनारे से खा, जहाँ पर ठंडी है, कहाँ बीच में हाथ डाल रहा है! हाथ तो जलेगा ही|
ऐसा ही वो चन्द्रगुप्त है, नन्द को जीतने के लिये किनारे से आता, सीधा पाटलिपुत्र
पर हमला बोल पड़ा, हारना तो था ही ; अब हार के भाग गया |
वृद्धा की बात
सुनकर, चन्द्रगुप्त को अपनी गलती मालूम पड़ी | गलती सुधारी, चाणक्य ने कूटनीतिक जाल
बिछाया, और किनारों से जीतते हुए अंत में नन्द वंश का नाश कर दिया |
प्रिय दोस्तों, उतावलापन हमारी दूरदर्शिता पर ग्रहण लगा देता है | अगर आपकी मंजिल बड़ी है तो उतावलापन
त्यागकर, शांत मन से रणनीति बनाकर छोटे-छोटे पड़ावों को पार करके मंजिल तक पहुँचना
आसान रहेगा| धन्यवाद|
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