लाला धनीराम बहुत
बड़े व्यापारी थे, शहर के अमीर लोगों में वे प्रमुख थे | अकूत धन-दौलत और सारी
सुख-सुविधायें थी, लेकिन कई साल बीतने के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं हुई |
धनीराम को इस बात से
कोई परेशानी नहीं थी, ना ही उनकी पत्नी को कोई परेशानी थी कि उनकी कोई संतान नहीं
है; वे अपने दैनिक काम सुचारु रूप से करते और दान-पुण्य के काम में भी बढ़-चढ़कर
हिस्सा लेते थे | मगर धनीराम की माँ को यह बात बड़ी खलती थी, वो तो हरदम चिंता में
घुले जाती थी; आये दिन किसी ज्योतिष, हकीम-डॉक्टर को धनीराम से मिलवाने ले आती थी
| धनीराम अपनी माँ को दुखी नहीं करना चाहते थे, इसलिए वो सबसे मिलते थे, पर करते
अपने ही मन की थे |
ऐसे ही एक दिन उनकी
माँ किसी पंडित को धनीराम से मिलवाने ले आयी |
पंडित ने सब देखभाल
के कहा- लाला जी, आपके भाग्य में संतान सुख नहीं है, फिर भी आप पुत्र कामना हेतू
पुत्रेष्टि यज्ञ करवा लेंगे तो संतान प्राप्ति हो जायेगी |
धनीराम शांत स्वभाव
के आदमी थे, मुस्कराकर बोले- पंडित जी, आपका उपाय जरूर लाभकारी होगा, पर कुछ दिनों
पहले ही मुझे विचार आया और मुझे लगा, मेरी संपत्ति और वंश को सँभालने के लिये बहुत
सारी संतानों की आवश्यकता पड़ेगी | ऐसी संतानें जो शिक्षित-सज्जन हो, जो समाज के
लिए आदर्श हो, जो देश-समाज का नाम रोशन करे | ऐसी संतानें मुझे बिना पूजा-पाठ के
ही मिलने वाली हैं |
पंडित जी ने असमंजस
भाव से पूछा- लाला जी, मैं आपकी बात समझा नहीं ! बिना पूजा-पाठ किये ऐसा कोई योग
आपके भाग्य में नजर नहीं आ रहा है, ऐसा कैसे संभव है ?
धनीराम बोले- संभव
है, आप थोड़ा धैर्य रखिये, आपके सवाल का जवाब कुछ दिनों में मिल जायेगा |
लाला धनीराम ने शहर में
पड़ी अपनी कई बीघा जमीन में ‘नवभारत’ नाम का एक विशाल विद्यालय बनवाया, उस विद्यालय
को अपनी सारी संपत्ति दान में दे दी | विद्यालय में पढ़ने वाला हर विद्यार्थी लाला
जी की संतान समान हो गया | धनीराम का उन बच्चों के साथ और उन बच्चों का धनीराम के
साथ, पिता-संतान जैसा रिश्ता बन गया |
इस तरह लाला जी को
कई संतानें एक साथ मिल गयी और शिक्षा की अलग ही ज्योत जलने लगी |
प्रिय दोस्तों, धनीराम जैसा काम हर कोई कर सके ये संभव नहीं है, लेकिन आप अपनी संतान को अच्छी
से अच्छी शिक्षा देने का प्रयास जरूर करें | सुशिक्षित संतानें ही परिवार-समाज-देश
की पहचान और सम्मान हैं | शिक्षा में किया खर्च, कभी बेकार नहीं होगा | धन्यवाद|
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