बनारस का एक नाविक
श्यामसेवक निम्न वर्ग परिवार से था, गंगा-घाट में पर्यटकों को नौकाविहार करा के जितना
कमाता था, उसी में अपने परिवार का भरण-पोषण और अपने बेटे कमल की पढाई का खर्चा उठाता था |
शाम के समय,
श्यामसेवक का बेटा कमल उसकी मदद करने आ जाया करता था |
एक शाम, कमल ने अपने
पिता श्यामसेवक से पूछा- पिताजी, सुख का जीवन में महत्व है, पर दुःख का जीवन में
क्या मतलब है ? दुःख क्यों आते हैं ? काश ! यह दुःख नहीं होते तो जीवन कितना सफल
होता, दुःख जीवन को असफल बना देते हैं |
श्यामसेवक ने कमल से
कहा- चल, एक चक्कर गंगा की सैर करके आते हैं |
कमल ने फिर से वही राग
गाया- पिताजी, अगर किसी के जीवन में सुख ही सुख होंगे, उसका जीवन कितना मजेदार और
सफल होगा ना !
श्यामसेवक ने कमल को
नाव में बैठने के लिये कहा |
कमल को लगा, उसके
पिता उसकी बात को कोई महत्व नहीं दे रहे हैं, उसने फिर से वही बात कही |
श्यामसेवक ने कहा-
सैर पर चल तो सही, नाव में बैठकर करेंगे बातें |
नाव में बैठकर,
श्यामसेवक ने सिर्फ एक चप्पू से नाव चलानी शुरू की | ऐसा करने से नाव आगे बढ़ने के बजाय,
एक ही जगह पर गोल-गोल घूमने लगी |
कमल ने असमंजस भाव
से कहा- पिताजी, आप एक ही चप्पू चलाते रहोगे, तो हम ऐसे ही गोल-गोल घूमते रहेंगे,
सैर नहीं कर पायेंगे |
श्यामसेवक ने
मुस्कराकर कहा- तू समझदार है, मेरे ऐसा करने से तू अपनी बात का मतलब समझ गया होगा कि
जीवन में दुख का क्या मतलब है |
कमल ने नासमझ भाव से
अपने पिता की ओर देखा |
श्यामसेवक ने
समझाया- बेटा, हमारा जीवन इस नाव की तरह है और दोनों चप्पू सुख-दुःख की तरह हैं |
अगर जीवन में सुख ही सुख होगा तो जीवन ऐसे ही गोल-गोल घूमता रहेगा, कभी आगे नहीं
बढ़ पायेगा; जीवन एकदम नीरस हो जायेगा | जैसे नाव को चलाने के लिए दोनों चप्पू का
महत्व है, वैसे ही जीवन को सफल तरीके से चलाने के लिए सुख-दुःख दोनों का महत्व है;
वरना जीवन सफल नहीं, नीरस हो जायेगा |
प्रिय दोस्तों, सुख की कामना हम सभी करते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, फिर भी जीवन में दुःख आते
हैं | दुःख जीवन को असफल बनाने के लिए नहीं होते, बल्कि दुःख भी हमें कुछ ना कुछ जरूर
सिखाते हैं | सफल गतिमान जीवन के लिए सुख-दुःख दोनों का महत्व है | धन्यवाद|
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