अकस्मात मत्यु के
बाद, तीन युवतियों की आत्मा अपने-अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग पहुँची |
स्वर्ग में प्रवेश
से पहले, धर्मराज ने तीनों युवतियों की आत्मा को बारी-बारी से एक सवाल पूछा- नारी
के जीवन के बारे में आपकी क्या राय है ? क्या आप अगले जन्म में भी नारी बनना
चाहेंगी ?
पहली युवती का जीवन,
उच्च मानसिकता वाले परिवार में गुजरा था, उसके परिवार और आस-पास समाज के सभी सदस्य
नारी का सम्मान करते थे, उसका जीवन खुशियों से भरा था |
पहली युवती की आत्मा
ने कहा- धर्मराज, मेरा जीवन बहुत प्यारा था, मुझे अपनी अकाल मृत्यु का बड़ा दुःख है
| मुझे अपना जीवन किसी परी या देवी से कम नहीं लगता था, मैंने अपना जीवन पूरे स्वाभिमान
और सम्मान से जिया, इसलिए अगले जन्म में मुझे नारी रूप ही देना |
दूसरी युवती सामान्य
मानसिकता वाले परिवार और समाज से थी, उसने कहा- धर्मराज, मेरा जीवन ख़ुशी और दुःख से
भरा था, मुझे ऐसे समाज के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ा, जहाँ अच्छे और बुरे दोनों लोग रहते
थे, वहाँ नारी का सम्मान और अपमान दोनों था | मैं ऐसा नहीं कह सकती कि मेरा जीवन
हमेशा सम्मानजनक रहा, क्योंकि अक्सर मेरे स्वाभिमान को तोड़ा जाता था, और जितना भी
जीवन मैंने जिया हमेशा अपने स्वाभिमान को बचाने में ही बिता दिया | प्रभु, कोई
मुझे देवी कहे मेरी यह इच्छा नहीं है, पर मैं चाहती हूँ कि आप मुझे अगला जन्म पहली
युवती जैसे घर में दें, ताकि मैं भी स्वाभिमान से जीवन जी सकूँ |
तीसरी युवती बहुत ही
निम्न वर्ग से सम्बन्धित थी, जहाँ हर तरह से निम्नता थी | जब धर्मराज ने उससे
पूछा, उसने चौंककर कहा- प्रभु, मुझे तो कभी यह समझ नहीं आया कि आपने मुझे जन्म
क्यों दिया ? मैं अनपढ़ थी, ना ही मैंने कोई सुख और ख़ुशी देखी, ना ही मुझे
स्वाभिमान और सम्मान के बारे में पता था | जब मैंने जन्म लिया किसी को ख़ुशी नहीं हुयी,
थोड़ा बड़ी हुयी तो पारिवारिक हिंसा, घर से बाहर निकली तो सामाजिक प्रताड़ना; मेरी
मृत्यु भी घोर वेदना भरी थी, जिसे बताने का मेरा मन नहीं है | प्रभु, अगर आप मुझे
नारी बनाना चाहते हैं तो मुझे भी अगला जन्म पहली युवती जैसे घर में दें, सम्मान और
स्वाभिमान का जीवन क्या होता है यह मुझे भी पता चल सके, वरना मुझे नारी मत बनाना, तभी
मैं मानूँगी आपका न्याय एकदम सही है |
धर्मराज ने गंभीर
भाव से कहा- सब नारियों के प्राण मेरे लिए समतुल्य हैं, लेकिन धरती में नारी के कई
रूप हो जाते हैं | मेरा काम इंसान के कर्मों के आधार पर न्याय करना है, प्रभु ने प्रत्येक
नारी को स्वाभिमान और सम्मानपूर्ण जीवन जीने के लिए ही इस धरती पर भेजा है, जिससे धरती
का जीवनचक्र भली-भांति चल सके | जो नारी का शोषण और दमन करते हैं, अपने अहम् से
नारी के स्वाभिमान को कुचलते हैं, ऐसे मूर्ख पापी लोग भी मरने के बाद मेरे ही पास आते
हैं, उनके कर्मों का हिसाब उन्हें मिलता है | सबके कर्मों का हिसाब आखिर में मैंने
ही करना है, कोई बच नहीं सकता |
ऐसा कहकर, धर्मराज
ने उन तीनों आत्माओं को आशीर्वाद देकर स्वर्ग में जाने दिया और अन्य मृत आत्माओं
के साथ न्याय करने लगे |
प्रिय दोस्तों, एक सवाल अपने दिल से जरूर पूछना, क्या नारी ऐसे परिवार-समाज-देश का हिस्सा
नहीं बन सकती जहाँ नारी अपने स्वाभिमान-सम्मान से रह सके ? अगर ‘ना’, तो आपको
मानसिक विकास की जरूरत है; अगर ‘हाँ’, तो ‘ना मानसिकता’ वालों को बदलने के लिए एक
हो जाओ | जब नारियों की स्थिति सुधरेगी तभी परिवार-समाज-देश उन्नति करेगा, इसे
जितनी जल्दी समझ लो उतना अच्छा है | धन्यवाद|
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