भिखारी का अफ़सोस
एक बार एक भिखारी किसी नगर में भीख माँगने निकला | वह पहली बार इस नगर में आया
था, इसलिए उसे यहाँ से अच्छी भीख मिलने की उम्मीद थी | वह नगर में सुबह से शाम तक
भीख माँगता रहा, इस तरह उसे पर्याप्त अनाज मिल गया |
शाम को वह खुश होकर अपने घर लौट रहा था, तभी उसे राजा की सवारी आती हुयी
दिखाई दी, वह भी राजा की सवारी देखने के लिए एक किनारे बैठ गया | जब राजा की सवारी
उसके नजदीक आयी, तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि राजा अपने रथ से उतरकर उसकी
ओर आ रहे हैं |
राजा, भिखारी के पास आये और उसके सामने हाथ फैलाते हुए बोले- मुझे आपसे कुछ
भीख चाहिए |
यह सुनकर भिखारी असमंजस में पड़ गया, वह मन ही मन सोचने लगा- जिसका पूरे राज्य
पर हक़ है, जो अथाह संपत्ति का स्वामी है, वह एक भिखारी से भीख क्यों माँग रहा है ?
राजा की बात सुनकर, भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला और मुट्ठी भर अनाज
निकालने लगा | तभी उसके मन में ख्याल आया- आज पर्याप्त अनाज मिला है, इसे भी राजा
को दे दूँगा तो घर क्या ले जाउँगा !
यह सोचकर उसने अनाज के सिर्फ दो दाने निकालकर कहा- महाराज, मेरे पास इस समय
अनाज के दो दाने ही बचे हैं |
राजा ने प्रसन्नतापूर्वक धन्यवाद भाव से कहा- आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपकी
यह छोटी सी भीख भी राज्य की रक्षा के लिए पर्याप्त है |
फिर राजा ने अपने सिपाही की ओर इशारा किया, जिसने सोने के सिक्कों से भरे संदूक
में से दो सिक्के निकालकर भिखारी के कटोरे में रख दिए | यह देखकर, भिखारी पुनः
असमंजस में पड़ गया |
इस पर राजा ने कहा- राज्य-ज्योतिषी ने कहा था, पहले मिलने वाला भिखारी श्रद्धा
से जितनी भी गिनती की चीजें दे, उसके बदले उसे उतनी ही सोने की मुहरें दे देना |
ऐसा कहकर, राजा ने अनाज के दो दानों के चार टुकड़े किये और अपने सिपाहियों के
साथ राज्य के चारों कोनों की ओर चल पड़ा |
भिखारी अपनी बेवकूफी पर अफ़सोस करते हुए सोच रहा था- काश ! मैं राजा को अनाज
देने में संकोच नहीं करता, तो आज मेरी जीवनभर की गरीबी मिट जाती | लेकिन अब अफ़सोस
करने का कोई अर्थ नहीं था, वह सोने के दो सिक्कों को पकड़कर अपने घर की ओर चल पड़ा |
प्रिय दोस्तों, जनहित के कार्य में अपनी सामर्थ्य के अनुसार उदारतापूर्वक
दान देने से उस दान के बदले किसी न किसी दीर्घ लाभ की प्राप्ति अवश्य होती है |
अतः जनहित के कार्य में अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए | धन्यवाद|
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